आध्यात्मिक शिक्षा का प्रशिक्षण केंद्र श्री मदन धाम

दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप अपने लिए दूसरो से चाहते हैं।

श्री मदन धाम क्या है

श्री मदन धाम न मन्दिर है, न मस्जिद है, न गिरजाघर है , न गुरु गद्दि है, न यह रोगों के इलाज करने का स्थान है और न ही यह तांत्रिक विद्या का स्थान है । यह आध्यात्मिक शिक्षा का प्रशिक्षण केंद्र है । यहाँ पर उन शक्तियों के बारे में क्रियात्मक रूप में ज्ञान दिया जाता है जो दिखाई तो नहीं देती परन्तु उनका प्रभाव इंसानी जीवन पर पड़ता है, जैसे कुल देवता से लेकर परम शक्ति तक कौन क्या है ? आत्मा, महान आत्मा और परम आत्मा क्या हैं ? उनके नियम, गुण, शक्तियाँ और कार्यक्षेत्र क्या हैं ? आध्यात्मिक शिक्षा का केंद्र उसे कहा जाता है जहाँ अध्यात्मवाद के बारे में केवल मौखिक ज्ञान दिया जाए । आध्यात्मिक शिक्षा का प्रशिक्षण केंद्र उसे कहा जाता है जहाँ आध्यात्मिक विषयों पर प्रमाणों सहित क्रियात्मक रूप में ज्ञान दिया जाए ।

श्री मदन जी कौन है?

श्री मदन जी का जन्म एक बहुत ही साधारण ब्राह्मण अग्निहोत्रि परिवार में 22 अक्तूबर 1947 को गाँव मानकपुर, जिला रूपनगर (पंजाब) में हुआ । यूं तो बचपन से ही श्री मदन जी द्वारा ऐसे कई अलौकिक प्रदर्शन किए गए जिनसे यह संकेत मिलते थे कि वे कोई साधारण आत्मा नहीं हैं परन्तु समय से पहले उन्हें कोई पहचान न सका । 17 जुलाई 1985 को श्री मदन जी द्वारा एक अभूतपूर्व नर लीला का शुभारंभ किया गया जिसमें उनके द्वारा अनेकों प्रकार के भूत-प्रेतों, वीरों-पीरों, देवी-देवों और भगवानों जैसे विभिन्न रूपों के प्रदर्शन किए गए । क्रियात्मक रूप में यह सिद्ध किया कि इंसानी शक्ति के अतिरिक्त दैवी शक्ति भी होती है । कुछ समय के पश्चात परम शक्ति जिसे ईश्वर, अल्लाह, गौड, वाहिगुरु, राधा-स्वामी, निरंकार इत्यादि कहा जाता है, उसने श्री मदन जी के माध्यम से स्वयं घोषणा की कि –

“वैसे तो मैं न नर हूँ और न नारी हूँ , मैं तो एक शक्ति हूँ , परन्तु अपने विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए मैं एक इन्सान बनी हूँ । जिस शरीर में मैं बोल रही हूँ , केवल और केवल यही मेरा शरीर है और मेरा नाम मदन है ।”

इस घोषणा के अनुसार परम शक्ति का वर्तमान नाम ‘श्री मदन’ है । जिस शरीर में वह बोल रही है वह उसका रूप है और वह अपने आप में पूर्ण है । परम शक्ति ने स्वयं इस रहस्य से परदा उठाया कि श्री मदन जी कौन हैं । परम शक्ति ने अपने श्री मुख से ज्ञान दिया है कि जब परम शक्ति जन्म लेकर धरा पर आती है तो वह शरीर पूर्ण परमेश्वर कहलाता है । इसी लिए श्रद्धालु उन्हें “पूर्ण परमेश्वर श्री मदन जी” के नाम से संबोधित करते हैं । जहाँ पर वे निवास करते हैं उसे श्री मदन धाम कहा जाता है ।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

आरंभ में इस दरबार का नाम “श्री मदन धाम” नहीं था। इस दरबार की कार्यप्रणाली जुलाई मास वर्ष 1985 में वीर-पीर, देवी-देवताओं के रूप में आरंभ हुई। उस समय यहाँ आने वाले व्यक्तियों के दुःख का निवारण किया जाता था। इसलिए उस समय इस दरबार का नाम “दुःख निवारण भवन” रखा गया था। वर्ष 1987 में इस दरबार में “भगवान शिव” और “आदि शक्ति” के रूप की भूमिका आरंभ हुई जो दिसंबर 1994 तक रही, इस दौरान इस दरबार का नाम “आदि शक्ति मंदिर” रखा गया। उसके पश्चात जनवरी 1995 में परम शक्ति रूप में भूमिका आरंभ हुई। जब अनादि, अनंत परम शक्ति ने यह घोषणा की कि “मैं अदृश्य से दृश्य बनी हूँ। यह शरीर मेरा है, मेरा नाम ‘मदन’ है।” तब इस दरबार का नाम “श्री मदन धाम” रखा गया क्योंकि “परम शक्ति” ने अपना नाम ‘मदन’ रख लिया था।

“धाम” शब्द का अर्थ है घर या निवास स्थान, इसलिए “श्री मदन धाम” का अर्थ है वह स्थान जहाँ “श्री मदन जी” परिवार सहित निवास करते हैं। अब यह जानना आवश्यक है कि “श्री मदन जी” कौन हैं? इस संबंध में इतना ही कहना है कि वह शक्ति जो अनादि, अनंत और सर्वोच्च है, सृष्टि की रचयिता और पालनकर्ता है, जिसके हाथ में इंसान का जीवन-मृत्यु, लाभ-हानि, यश-अपयश, सफलता-असफलता, सुख-दुःख, खुशी-ग़मी, शांति-अशांति है, जो सत्य, न्याय और प्यार की प्रतीक है, जो कर्मफल दाता है, जिसके पास इंसान शरीर त्याग कर जाता है, जिसकी आराधना ऋषि-मुनि, संत-फ़क़र, देवी-देवता, वीर-पीर और भगवान करते आए हैं, जिसे लोग ईश्वर, अल्लाह, गॉड, राधा-स्वामी, निरंकार, शिव, आदि नाम से पुकारते हैं, जो लोग उसको किसी रूप में नहीं मानते अपितु उसे कुदरत, प्रकृति, नेचर, अदृश्य शक्ति, अनाम शक्ति आदि नाम से पुकारते हैं, उसी शक्ति ने इस दरबार की स्थापना प्रमाण सहित स्वयं की है। उस शक्ति की घोषणा है कि “मैं इंसान बनी हूँ, यह शरीर मेरा है, मेरा नाम मदन है।” अब श्री मदन जी परिवार सहित यहाँ निवास करते हैं। इस लिए इस दरबार का नाम श्री मदन धाम है।

उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि यह धाम किसी साधारण इंसान का नहीं है और न ही किसी देवी-देवता, वीर-पीर या भगवान का है। यह धाम सर्वोच्च शक्ति का है जो इंसानी रूप में परिवार सहित यहाँ निवास करती है, जिसका मौजूदा नाम श्री मदन है। इसलिए इस स्थान का नाम श्री मदन धाम है।

श्री मदन धाम परम शक्ति द्वारा स्थापित किया गया आध्यात्मिक शिक्षा का प्रशिक्षण केंद्र है। यहाँ पर ईश्वर साकार रूप में परिवार सहित निवास करते हैं। यहाँ पर ईश्वर और ईश्वरीय शक्तियों, अर्थात आत्मा, महान आत्मा, परम-आत्मा और परम शक्ति के बारे में ‘परम शक्ति’ स्वयं क्रियात्मक रूप में ज्ञान दे रही है जो इंसान को दिखाई तो नहीं देती परन्तु उनका इंसान को अनुभव होता है और उनके जीवन पर प्रभाव भी पड़ता है। यहाँ पर उन सभी रहस्यों पर से पर्दा उठाया जा रहा है जो इंसान के मन में अध्यात्मवाद के संबंध में बने हुए हैं।

श्री मदन धाम की स्थापना परम शक्ति ने धरा पर साकार रूप में आकर स्वयं की है। वैसे तो इंसान ने जो भी सीखा है परम शक्ति से ही सीखा है। हर प्रयास के पीछे परम शक्ति की प्रेरणा होती है और हर सफलता के पीछे परम शक्ति की कृपा होती है मगर वह दिखाई नहीं देती। यहाँ पर वही अदृश्य शक्ति जो कि सृष्टि की हर्ता, कर्ता और धर्ता है; अनादि, अनंत व सर्वोच्च है; जो न नर है न नारी है, घोषणा कर रही है कि वह एक इंसान बनी है और जिस शरीर में वह बात कर रही है वही उसका शरीर है, अर्थात श्री मदन जी के शरीर में परम शक्ति बात करती है। परम शक्ति के आदेश से श्री मदन धाम की स्थापना हुई है। इस धाम की कार्य-प्रणाली न तो यहाँ की प्रबंधक कमेटी चला रही है, न ही किसी व्यक्ति विशेष की इच्छा से कुछ होता है। केवल परम शक्ति के आदेश से ही हर कार्य होता है और परम शक्ति का आदेश ही सर्वमान्य होता है। इस लिए यहाँ परम शक्ति पर्दे के पीछे न होकर स्वयं प्रत्यक्ष रूप में कार्य कर रही है। उसी ने इस धाम की स्थापना स्वयं की है।

श्री मदन धाम आध्यात्मिक शिक्षा का प्रशिक्षण केंद्र है। यहाँ पर आध्यात्मिक शिक्षा क्रियात्मक रूप में दी जाती है। परम शक्ति ने स्वयं ही इस धाम की स्थापना की है और इस धाम की स्थापना के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

  1. श्री मदन धाम की स्थापना का उद्देश्य परम शक्ति या ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करना है।
  2. परम शक्ति की घोषणा है कि “वैसे तो मैं न नर हूँ न नारी हूँ, मैं तो एक शक्ति हूँ। मैं अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए इंसान बनी हूँ, यह शरीर मेरा है, मेरा मौजूदा नाम ‘मदन’ है।” इस तथ्य को सत्य सिद्ध करना।
  3. परम शक्ति द्वारा अपने गुण, नियम और शक्तियों के बारे में क्रियात्मक रूप में ज्ञान देना।
  4. अध्यात्मवाद के विषय में जो भ्रम हैं, उन पर से क्रियात्मक रूप में पर्दा उठाना और सत्य का ज्ञान देना।
  5. समाज में फैली कुरीतियों, भ्रमों और आडंबरों पर से पर्दा उठाना।
  6. विश्व बंधुत्व की स्थापना करना।
  7. हर रूप में कर्ता परम शक्ति ही है। वही सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान है। वह इंसान में से ही देवी-देवता, वीर-पीर और भगवान का चुनाव अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए करती है और वह गिनती में एक है, इस तथ्य को क्रियात्मक रूप में सत्य सिद्ध करना।

श्री मदन धाम के मुख्य नियम व शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं:-

  1. दूसरों से ऐसा व्यवहार करो जैसा आप दूसरों से अपने लिए चाहते हो।
  2. नेक कर्म, सद्व्यवहार और सभी से प्यार करो।
  3. किसी को भी अपना दुश्मन न समझो। जो आपको अपना दुश्मन भी समझता है उससे भी प्यार करो।
  4. हर इंसान को जाति, वर्ग, धर्म, लिंग आदि के भेदभाव से ऊपर उठा कर एक सच्चा अध्यात्मवादी बनाना, जो संकीर्ण दिल न होकर सभी धर्मों और महान-आत्माओं का समान दृष्टि से आदर-सत्कार करे।
  5. हर इंसान में इंसानियत के गुण पैदा करना।
  6. ईश्वर एक है और केवल वही सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान है। पूजा के योग्य भी वही है। इंसान को उसी पर भरोसा रखना चाहिए। वही सबका सच्चा गुरु है। इस तथ्य से अवगत करवाना।
  7. मानव को मानव समझना, जो वास्तव में सच्चा धर्म है।
  8. किसी से भी ईर्ष्या, द्वेष, नफ़रत, वैर-विरोध, बदले की भावना न रखना, क्योंकि इस से मन अशांत रहता है जो ईश्वर प्राप्ति में बाधा बनता है।
  9. सदा न्याय का साथ देना और अन्याय के विरुद्ध डट जाना, क्योंकि अन्याय करना और सहना दोनों ही पाप हैं।
  10. होनी को सहज भाव से स्वीकार करना, अर्थात ईश्वर की रज़ा में राज़ी रहने का प्रयास करना।
  11. दूसरों की वस्तु पर अपना हक़ न जताना।
  12. किसी की चुगली, निंदा, बुराई या नुक्ताचीनी न करना। किसी में दोष निकालने से पहले सोचना कि कहीं यह दोष मुझमें तो नहीं है।
  13. जीवन में सच्चाई और ईमानदारी से सख़्त मेहनत करके उन्नति करने का प्रयास करना।
  14. ईश्वर-कृपा बिना किसी भी काम में सफलता मिलना असंभव है। इस लिए किसी भी कार्य को करने से पूर्व ईश्वर के समक्ष प्रार्थना करनी और कार्य हो जाने पर शुक्रगुज़ार होना।
  15. सभी धर्मों और महान-आत्माओं का आदर सत्कार करना क्योंकि वे सभी सच्चाई की ओर ही ले जाते हैं।
  16. क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। इसे अपने अंदर न पनपने देना, क्योंकि क्रोध में लिया गया निर्णय कभी भी ठीक नहीं होता।
  17. ईश्वर से कभी नाराज़ न होना, क्योंकि ईश्वर सदैव ठीक होते हैं। सुख-दुःख इंसान के अपने ही कर्मों का फल होता है।
  18. इंसान का सुख में ईश्वर का शुक्रगुज़ार होना और दुःख में प्रार्थना करना, क्योंकि ईश्वर न्यायकारी होते हुए भी परम दयालु होते हैं।

जब भी व्यक्ति किसी धार्मिक स्थान पर जाते हैं तो उनके उद्देश्य अलग-अलग होते हैं, जैसे मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए, ज्ञान की प्राप्ति के लिए, कष्ट-परेशानियों से राहत पाने के लिए, पैतृक संस्कार के कारण, अगले जन्म के सुधार के लिए, डर के कारण कि यदि वहाँ न गए तो कोई आपदा अथवा कष्ट न हो जाए इत्यादि। हर इंसान का उद्देश्य अलग होता है। जिसे जहाँ विश्वास होता है कि वहाँ उसका उद्देश्य पूर्ण हो सकता है, वह वहाँ जाता है। संक्षेप में व्यक्ति शारीरिक सुख, मानसिक शांति और खुशहाली पाने के लिए धार्मिक स्थान पर जाता है। श्री मदन धाम आध्यात्मिक शिक्षा का प्रशिक्षण केंद्र है। यहाँ पर परम शक्ति स्वयं श्री मदन जी के शरीर में बात करती है। यहाँ अध्यात्मवाद का ज्ञान क्रियात्मक रूप में दिया जाता है और साथ-साथ व्यक्तियों की सांसारिक मनोकामनाएँ भी पूर्ण की जाती हैं। इसलिए व्यक्ति श्री मदन जी के मुख से ज्ञान प्राप्ति, उनके दर्शन करने, अपने कष्टों, परेशानियों, समस्याओं से राहत पाने के लिए और उनका मार्गदर्शन व आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं, जिससे उनका यह जीवन और भावी जीवन सुखमय और सार्थक हो सके।

अब प्रश्न है कि आप श्री मदन धाम से क्या प्राप्त कर सकते हैं। परम शक्ति ने स्वयं श्री मदन धाम की स्थापना की है और वह स्वयं ही यहाँ कार्यशील है। यहाँ जो भी ज्ञान दिया जाता है वह तर्क के साथ दिया जाता है। जब तक किसी बात के लिए प्रमाण नहीं मिलता, तब तक उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इस लिए जो भी ज्ञान यहाँ पर दिया गया है, प्रमाण सहित दिया गया है अर्थात यहाँ पर इंसान को अंधविश्वासी नहीं अपितु ज्ञानी बनाया जाता है, जिससे वह स्वयं निर्णय ले सके कि उसके लिए क्या ठीक है या ग़लत है। इसके साथ-साथ आने वाले व्यक्तियों की मनोकामनाएँ भी पूर्ण की जाती हैं। यदि कोई व्यक्ति श्री मदन धाम में दिए गए ज्ञान को अपने जीवन में लागू करने की कोशिश करता है और अपनी श्रद्धा, विश्वास, लगन और प्यार से परम शक्ति की कृपा प्राप्त करता है, तो वह व्यक्ति श्री मदन धाम से निम्नलिखित प्राप्ति कर सकता है:-

  1. शंका रहित ज्ञान।
  2. परम शक्ति की शरण और मार्गदर्शन।
  3. ईश्वर प्राप्ति।
  4. शारीरिक तंदुरुस्ती, मानसिक शांति और खुशहाली।
  5. नेक इंसान बनने का प्रशिक्षण।
  6. व्यर्थ के वहम, भ्रम, आडंबरों, कुरीतियों से रहित एक सरल और सार्थक जीवन शैली।
  7. निम्न-स्तर के देवी-देवताओं और असुरी शक्तियों के बारे में सत्य का ज्ञान।
  8. मोक्ष प्राप्ति।

संसार में जितने भी धार्मिक स्थान हैं उनकी स्थापना के पीछे प्रेरणा स्रोत तो परम शक्ति ही होती है। परम शक्ति उन स्थानों पर आने वाले लोगों की मनोकामनाएँ पूर्ण करती है। श्री मदन धाम में भी वही ताक़त जिसे ईश्वर, अल्लाह, गॉड, वाहेगुरु, राधा-स्वामी, निरंकार के नाम से जाना जाता है, स्वयं अपनी अनोखी लीला कर रही है। इसलिए श्री मदन धाम में और अन्य धार्मिक स्थानों में अंतर होना स्वाभाविक है। पाठक की सुविधा के लिए कुछ अंतर नीचे दिए गए हैं:-

  1. श्री मदन धाम में सृष्टि की हर्ता-कर्ता सर्वोच्च शक्ति स्वयं प्रत्यक्ष रूप में कार्य करती है। यहाँ हर कार्य परम शक्ति के आदेश से होता है जबकि दूसरे धार्मिक स्थानों पर परम शक्ति परोक्ष रूप में कार्य करती है। वहाँ के सभी कार्य वहाँ के मुखिया या कुछ लोगों की सर्व-सम्मति से होते हैं।
  2. यहाँ पर परम शक्ति अपने श्री मुख से ज्ञान दान करती है। यहाँ पर किसी धार्मिक ग्रंथ का वाचन नहीं किया जाता, जबकि अन्य धार्मिक स्थानों पर शाश्वत धार्मिक ग्रंथों का वाचन करके ज्ञान दिया जाता है।
  3. यहाँ पर परम शक्ति अध्यात्मवाद का ज्ञान क्रियात्मक रूप में देती है जबकि दूसरे धार्मिक स्थलों पर ज्ञान मौखिक रूप में दिया जाता है।
  4. यहाँ पर गुरु और इष्ट स्वयं परम शक्ति है जबकि अन्य धार्मिक स्थानों पर गुरु और इष्ट अलग-अलग होते हैं।
  5. यहाँ पर पूजा-पाठ, जप-तप पर बल न देकर ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए, नेक कर्म, सद्व्यवहार और सभी से प्यार करने पर ही बल दिया जाता है। इस के विपरीत दूसरे स्थानों पर केवल पूजा-पाठ, जप-तप, हवन-यज्ञ, स्मरण आदि पर बल दिया जाता है।
  6. यहाँ माथा टेकने के लिए न तो किसी मूर्ति की और न ही किसी निर्जीव चित्र की स्थापना की गई है। यहाँ माथा केवल इंसानी रूप या उन के चित्र के आगे टेका जाता है।

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